कहीं निर्जन नहीं दिखता,
जहां बाँटू उदासी मैं।
सर-कटी लाश सी घूमूँ,
भीड़ का हांथ मैं थामे।
मक्खियों सी भिन्नभिनाती
गरीबी घूमती है यूं,
खुदा भी लग रहा मुझको
अमीरों की बात माने...
वोट बिकता रुप्पयों मे,
बिकी सच्चाई संसद मे।
बात-माने या ना माने।
ब-मुश्किल मिल रही रोटी,
देने वाले की बांह छोटी
निरंकुश श्वान को देखो।
देश को डोर से बांधे.....
मोहम्मद आएंगे कैसे,
कृष्ण तारेंगे जग कैसे?
लड़खड़ाते धरम की साँसे
हम बचाएंगे अब कैसे?
सोनिया बहुखंडी गौड़
बहुत-सुन्दर...अभिव्यक्त जी..
ReplyDeleteबहुत-सुन्दर...अभिव्यक्त जी..
ReplyDeleteexcellent.....it is truth.
ReplyDeletenice lines written with hearts ...... excellent
ReplyDeleteitni aag aur udasi liye dil me phirte ho,phir bhi muskurate ho
ReplyDeletesamundar dard ka andar liye phirte ho ,phir bhi neh barsate ho
(tumahre jajbe ko salam)
बहुत खूब !
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