Thursday 19 March 2015

पुरुषों की नई पौध

जीवन के प्रत्येक महाभारत में;
पार्थ(पुरुष) मैं हर क्षण
तुम्हारी सारथी (स्त्री) बनी।
रण में तुम कायर न कहलाओ
तुम्हे दिशा निर्देश देती रही।
तुम हर पल जीते
इसका श्रेय तक नहीं माँगा!
समाज को तुम अपनी
जागीर समझते रहे!
जबकि रचना मैं करती रही।
प्याज के छिलको जैसे
मेरे वस्त्र उधेड़े गए,
तुम जागीरदार होते हुए भी चुप रहे।
तुमने घर के लिए नए नए सूत्र
निर्धारित किये।
ये तुम्हारी गणित थी
जो मेरी समझ से परे थी।
फिर भी गृह कक्षा में अव्वल रही।
तुम अहम् के बीज बोते गए
मैं प्यार से उन्हें सींचती रही।
सुनो! एक नई परंपरा
बनाते हैं।
हम दोनों मिलकर!
कुछ ऐसे बीज
रोपित करो मेरे भीतर
जिससे कुछ आदर्शवादी
पुरुष जन्म लें!
जो रोक दें स्त्री-पुरुष के भेद को।
ताकि मुझे भी गर्व हो
और मैं कह सकूँ-
हाँ पुरुष तेरी रचनाकार मैं ही हूँ
सोनिया गौड़

1 comment:

  1. सोचा था फेसबुक वाली सोनिया प्रदीप गौड़ ब्लॉगर पे तो होंगी ही आज मिल गई हैं
    खैर आपकी कुछ पोस्ट और कविताएँ पढ़ी बेहतरीन है समय निकाल के सब पढना है

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