Tuesday 31 July 2012

तू किस सोच मे डूबी है माँ !


तू किस सोच मे

डूबी है माँ !

मुझको शरण दे

या मरण दे !

यही ना !

कितने युगो से

निर्वासन की मार,

मैं सहती रही,

और.... अपने अंत तक

फिर भी तेरा

वंदन किया।

आँखों से तेरे

भुवन को देखा सदा...

और तूने पुत्र के खोप मे

मेरे लिए म्रत्यु का

चयन किया...

चल सोच को त्याग कर

चिंतन को मुझ

पर छोड़ दे,

स्वीकार कर अंतिम नमन

मैं क्यूँ बनूँ

शरणार्थी !!

मैंने मरण और शरण मे

मरण का वरण  किया..

अब चीर दो या

काट दो,

अस्तित्व को मेरे

मार दो...परवाह नहीं

इस जन्म के दो माह मे

मैंने सभी को....

क्षमा किया....क्षमा किया

सोनिया बहुखंडी गौड़

5 comments:

  1. dukhad aur marmik abhivyakti, hridya ko choo liya...

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  2. बहुत मार्मिक..

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  3. वाह सोनिया जी .....सुन्दर रचना और सुन्दर ब्लॉग ........और सबसे मनभावन ये संगीत स्वरलहरी जो ब्लॉग खोलते ही बज रही हैं

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  4. आह.....
    कचोट गया हर एक लफ्ज़.....

    अनु

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  5. बहुत सुंदर कविता गंभीर विषय को चित्रित करते हुए.

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