मन के घावों की पीड़ा को
द्र्गु मे ही स्थान मिला
समझाया कितना पीड़ा को
फिर भी, उसने नैनो मे वास किया
तुमको क्या तुम बैरी निकले
तुमने मेरा परित्याग किया
मैंने तेरी खातिर
ईश्वर से भी युद्ध किया
और पराजित कर, ईश्वर को
इस धरती मे जन्म लिया
तुम ना समझे ह्रदय की
भाषा
तुमने सौतलेपन का वार किया
तुमको क्या तुम बैरी निकले
तुमने मेरा परित्याग किया
अब मेरे प्रांगण, विरह की शीत है
प्रेम की गर्मी हुई नदारद,
तिस पर तुमने बिन सावन
के
नैनो मे पावस घोल दिया।
मैंने संयोग के गीत रचे
थे
तुमने वियोग संग स्वांग
रचा
तुमको क्या तुम बैरी निकले
तुमने मेरा परित्याग किया।
मार्मिक भावाभिवय्क्ति.....
ReplyDeletebahut acchi ...
ReplyDeleteभावमय करते शब्द ... बेहतरीन
ReplyDeleteभावमयी करती सुन्दर रचना..अभिव्यंजना में आप का स्वागत है..
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