कुछ नहीं लिख पा रही
विचारों से मात खा रही
लिखने की मेरी कला
विलुप्त होती जा रही
लग रहा हड़ताल पर
शब्द आज हैं खड़े !
जाने मेरे विचार पर,
आज पत्थर क्यों पड़े?
अपनी कलम को आज मैं
बेमकसद घिसे क्यों जा रही ?
कुछ नहीं लिख पा रही
विचारों से मात खा रही
हूँ सिपाही कलम की
फिर भी ना जाने आज क्यों
मैं जंग से घबरा रही
विचारों मे जमी काई को
मैं हटा नहीं पा रही
कुछ नहीं लिख पा रही
विचारों से मात खा रही
तुम से पूछे बगैर इस बज़्म में चले आये
ReplyDeleteगर कोई खता हो जाये तो माफ़ कर देना!!
विचारों में जमी काई को
ReplyDeleteमै हटा नहीं पा रही........
सुन्दर और सशक्त रचना सोनिया जी...
bhtreen aur sunder rchna
ReplyDeleteविचारों पर कई तभी होती है जब नमी होती है
ReplyDeleteबहुत खूब
बहुत खूब.... आपके इस पोस्ट की चर्चा आज 29-6-2012 ब्लॉग बुलेटिन पर प्रकाशित है ..अपने बच्चों के लिए थोडा और बलिदान करें.... .धन्यवाद.... अपनी राय अवश्य दें...
ReplyDeletebahut sunder rachna tumhar sonu ...aise hi likhti raho ......tumhare unmukt vichar hamesha hi hume milte rahe aur tumhari kalam yu hi chalti rahe ....sunder rachna ke liye badhaai
ReplyDeletethanks meri pyari anju di sab aap badon ka aashirwad hai
Deleteशब्द कई बार अनशन पे होते हैं ... बहुत बढ़िया
ReplyDeleteकभी कभी ऐसा महसूस होता है की कुछ नहीं लिखा जा रहा .... पर विचार तो चलते रहते हैं मन में...
ReplyDeleteकभी ऐसा भी होता है चाह कर भी लिख नही पाते.....न लिख पा सकने के बाद भी बहुत कुछ लिख दिया ..सोनिया..
ReplyDeleteबहुत खूब ...
ReplyDeleteना लिख पाने की मनः स्थिति को लिखकर आपने जमी काई तो हटा ही दी :)
कभी कभी जड़ हो जाते हैं विचार ... पर बदल जाती है ये स्थिति ... इंतज़ार करना होता है सही समय का ...
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