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Thursday, 28 June 2012

विचारों से मात



कुछ नहीं लिख पा रही

विचारों से मात खा रही

लिखने की मेरी कला

विलुप्त होती जा रही

लग रहा हड़ताल पर

शब्द आज हैं खड़े !

जाने मेरे विचार पर,

आज पत्थर क्यों पड़े?

अपनी कलम को आज मैं

बेमकसद घिसे क्यों जा रही ?

कुछ नहीं लिख पा रही

विचारों से मात खा रही

हूँ सिपाही कलम की

फिर भी ना जाने आज क्यों

मैं जंग से घबरा रही

विचारों मे जमी काई को

मैं हटा नहीं पा रही

कुछ नहीं लिख पा रही

विचारों से मात खा रही

12 comments:

  1. तुम से पूछे बगैर इस बज़्म में चले आये
    गर कोई खता हो जाये तो माफ़ कर देना!!

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  2. विचारों में जमी काई को
    मै हटा नहीं पा रही........

    सुन्दर और सशक्त रचना सोनिया जी...

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  3. विचारों पर कई तभी होती है जब नमी होती है
    बहुत खूब

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  4. bahut sunder rachna tumhar sonu ...aise hi likhti raho ......tumhare unmukt vichar hamesha hi hume milte rahe aur tumhari kalam yu hi chalti rahe ....sunder rachna ke liye badhaai

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    1. thanks meri pyari anju di sab aap badon ka aashirwad hai

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  5. शब्द कई बार अनशन पे होते हैं ... बहुत बढ़िया

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  6. कभी कभी ऐसा महसूस होता है की कुछ नहीं लिखा जा रहा .... पर विचार तो चलते रहते हैं मन में...

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  7. कभी ऐसा भी होता है चाह कर भी लिख नही पाते.....न लिख पा सकने के बाद भी बहुत कुछ लिख दिया ..सोनिया..

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  8. बहुत खूब ...
    ना लिख पाने की मनः स्थिति को लिखकर आपने जमी काई तो हटा ही दी :)

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  9. कभी कभी जड़ हो जाते हैं विचार ... पर बदल जाती है ये स्थिति ... इंतज़ार करना होता है सही समय का ...

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