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Friday 13 April 2012

#### एक दुखड़ा चाँद का ####

एक जननी भूख से,
पीड़ित तनय को...
बरगलाने के लिए,
कल्पना से जड़ी एक
कथा है सुनाती...
... पुत्र मेरे क्षुब्ध मत हो,
आयेंगे जब जनक तेरे,
फिर मंगऊंगी मैं आटा...
पात्र में सानुंगी उसको,
और चूल्हे को जलाकर
तवा उसमे चढ़ाऊँगी
गुंथे आटे की,.... लोई बनाकर
चाँद जैसी गोल रोटी बनाऊँगी...
ऊंघते---ऊंघते....
माँ की झूठी कथा सुनकर
सो गया बालक जमी पर
तभी आये तात उसके
घर के भीतर,
सुन रहे थे जो,
भूख की पीड़ित कहानी
बाहर खड़े हो!!
कैसे बताएँगे, संगिनी को
आज भी वृत्ति नहीं उसको मिली कुछ
अश्रु से भीगे नयन से
पुत्र को अपने निहारे
और मन ही मन में
अपनी गरीबी को
है दुत्कारे!!!
तभी बालक नींद में, बडबडा के बोला
माँ मेरी रोटी बनाना चाँद जैसी
गोल-मटोल,
उदर की ज्वाला मेरी
अब जल से भी बुझती नहीं..
कहकर इतना...फिर से बालक सो गया
देख भू में--द्रश्य ऐसा
गगन का शशि भी रो पड़ा
और बोला-
हे प्रभु!! तुमने बनाया
गोल रोटी सा मुझे क्यों ?
जब उदर की अग्नि को
मैं शांत कर सकता नहीं
भूख से पीड़ित कुटुंब की
पीर मैं हर सकता नहीं
हे प्रभु!! तुमने बनाया
गोल रोटी सा मुझे क्यों?

20 comments:

  1. आखिरी की पंक्तियाँ बहुत ही प्रभावशाली हैं।


    सादर

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  2. बहुत ही भावपूर्ण रचना है ....सोनिया..बहुत सुन्दर..

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  3. bahut badiya kathyatmak shaili mein rachit samvedansheel prabhavpurn rachna...

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    Replies
    1. abhaar kavita jee, pahadon ki yaad sach me bahut aati h tahbi maine apne blog ka naam burans k naam par rakha

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  4. Buransh ke phool dekhkar gaon ke jangle yaad aane lage...

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  5. बहुत ही सुंदर एवं भावपूर्ण अभिव्यक्ति......

    बहुत बधाई....

    अनु

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  6. पूरे दिल दिमाग को झकझोरती रचना

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  7. ्झकझोर देने वाली सशक्त अभिव्यक्ति।

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  8. Hindi Blog Jagat mein aapka swagat hai. Is kavita par apni baat FB par pehle hi de chuka hoon.

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  9. बहुत सुन्दर सशक्त रचना !

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  10. गगन का शशि भी रो पड़ा
    और बोला-
    हे प्रभु!! तुमने बनाया
    गोल रोटी सा मुझे क्यों ?
    आह ! चांद हमसे ज्यादा मानवीय है ।

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  11. सशक्त अभिव्यक्ति...सुंदर चित्रण।

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  12. सबसे खास बात , जैसे जैसे मैं आगे बढ़ता जा रहा हूँ , कविता का स्तर बढ़ता जा रहा है |
    बहुत सुन्दर रचना | बच्चे का नींद से उठकर बोलने वाला भाग तो बहुत ही सुन्दर हो गया है |
    मुझे अपनी दो पंक्तियाँ याद आ रही हैं-
    'आज फिर जब एक रोटी , पूरे घर में बंट गयी ,
    चाँद की सुनकर कहानी , रात अपनी कट गयी |'

    सादर

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