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Thursday 5 July 2012


आज यादें, प्रिय तुम्हारी,

फिर से मुझको आ रही हैं,

और मन की पीर मेरी,

सघन होती जा रही है,

और सघनता जब बड़ेगी,

नयन को तरल करेगी

आज यादों की गुस्ताखी

ह्रदय को विमुख किए जा रही है।

आज यादें, प्रिय तुम्हारी,

फिर से मुझको आ रही हैं।

मैंने सदा चाहा

अरुण आए तुम्हारे द्वार मे

किन्तु तुमने ध्वांत राहें ही चुनी।

तुम सदा समझे,

ठिठोली प्रेम को मेरे प्रिय!

स्वार्थ से भीगी वो बातें

आग दिल मे लगा रही।

आज यादें, प्रिय तुम्हारी,

फिर से मुझको आ रही हैं,

मैं सदा कटिबद्ध थी,

परिणय हमारा हो प्रिय,

किन्तु मन प्रिय तुम्हारे

बसी थी और कोई !!

आज.... कलुषित

भावनाओं की सुधि मुझको आ रही

छलावे की हर कथाएँ,

ह्रदय को भेदे जा रही है,

आज यादें, प्रिय तुम्हारी,

फिर से मुझको आ रही हैं,

आज मैं एकांत हूँ

तुम जो संग नहीं,

किन्तु तेरी ढीठ यादें साथ हैं

जो अतिथि बन, आती सदा

यादों की ऐसी धृष्टता

ह्रदय को उद्वेग करती जा रही

आज यादें, प्रिय तुम्हारी,

फिर से मुझको आ रही हैं,

सोनिया बहुखंडी गौड़ 5/07/२०१२




6 comments:

  1. सुंदर अभिव्यक्ति ...... प्रेम और उसके प्रति आस इंतज़ार की

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  2. Jitne hee achchhe din saath mein beet te hain utnee hee baad mein yaadein rah jaatee hain .Yadein aur uskee ghair maujudgee ke sambandhon par bhee yeh kavita kuchh kahtee .Bas Akelapan hee vaastaviktaa ban jaatee hai .Bhavnaapoorna kavita

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  3. bahvbhini man ko bhigoti rachna

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  4. सुन्दर सोनिया जी हृदय की गहराईयों से उगती हुई यादों के पेड़ से बिखरती हुई टहनियां अपने आगोश में समेती हुई प्यारी रचना!

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  5. यादो की अंतहीन अभिवयक्ति.....

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