Friday, 23 January 2015

कल आज और कल

मेरा अस्तित्व जीवित है
अतीत के लिए,
वर्तमान और भविश्व
दबे पड़े हैं फासिल्स जैसे
जीवन की गहराइयों में
और मैं नितांत एकांत
तीनो कालों में फंसी
खुद को धकेलती दर्द की तन्हाइयों में।

वर्तमान सन्नाटों से भरा।
बेरंग सन्नाटें!
सन्नाटों की सत्ता बड़ी निरंकुश है।
अतीत सौम्य है बड़ा
"बर्फ की तरह"
ज़ेहन में आते ही पिघलने लगता है।
और निरंकुश वर्तमान
ग्रेनाइट की तरह कठोर हो जाता है।
यहीं से जीवित होता है मेरा अतीत!

सन्नाटें की हकीकत में
उसी चट्टान में सडा-गला सा भविश्व मेरा,
मृतप्राय!
सम्भवानाएं बेदम पड़ी हैं
सीपियों की तरह।
जिसे झटका था
समुद्री लहरों ने उदर से।
एक जीवन समाप्त हो रहा है
और अतीत जीवित हो उठा है
क्योंकि वर्तमान और भविश्व
दबे पड़े हैं फासिल्स की तरह.......
सन्नाटों और सड़ांध के बीच में।
Soniya gaur

1 comment:

  1. बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति। वसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनाएं।

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