एक औरत जो सनातन है, रोज गुज़र रही है कार्बन डेटिंग से,
वह औरत ख्याल नहीं सोचती
बस बातें करती है चीकट दीवारों से
बेबस झड़ती पपड़ियों के बीच लटके बरसों पुराने कैलेंडर में अंतहीन उड़ान भरते पक्षियों से!
और हाँ, बेमकसद बने मकड़ियों के जालों से भी। उसी औरत की डायरी के पन्ने खंगाल के लाइ है मेरी कलम जो आप सबको नजर है।
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Monday 25 June 2012
तेरे केश देखूं
तेरे केश देखूं तो गंगा....लगें हैं
बहती है जिसमे मेरी प्रीत निर्झर...
मुझे तुम विसर्जित करो इन लटों में...
मुझे जीवन अमृत इन्ही में मिलेगा..
मेरी प्रियतमा तुम मुझे ना भुलाना..
तेरे प्रेम से मेरा जीवन सजेगा.. (सोनिया बहुखंडी गौड़ )
बहुत सुन्दर भाव
ReplyDeleteखूबसूरत पंक्तियाँ
ReplyDeleteबहुत खूब
ReplyDeleteवाह: बहुत खुबसूरत...सोनिया..शुभकामनाएं
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