नार्सिज्म
1)
एक चुटकी ही है तुम्हारी ख्वाहिश!
जग से बड़ा है मेरा संकोच!
ये संकोच , मानो
दक्षिण ध्रुव की तमाम बर्फ के
नीचे दबा पड़ा है।
मृत नहीं हुआ अभी!
बस ठण्ड से अकड़ा पड़ा है।
वर्जनाएं बन बैठी हैं
ये शीत हवाएं।
तो करो अपने प्रेम को
और ढीठ करो,
कभी तो बर्फ पिघलेगी।
2)
जब सुनती है मेरी जिंदगी
तुम्हारी अभिसार भरी बातें,
सुनके स्वप्न उत्तेजित हो जाते हैं।
बंद कर देती हूँ नयन पाटल,
कहीं आँखों से टूट कर गिर ना पड़ें,
क्योंकि इनका धर्म है
खंडित होना।
3)
सुनो! मैं आउंगी तुम्हारे पास,
पूरी कर दूँगी तुम्हारी
प्रत्येक स्पृहा।
पिघला दूँगी संकोच को
किन्तु अभी तुम घिरे हो
"नार्सिज्म" के कोहरे के बीच!
छंटने दो बादलों को,
देखो! इच्छाओं का लाल पुष्प (सूरज)
खिल रहा है।
बर्फ पिघल रही है
उड़ जाने दो कोहरे को
मुक्त कर दो खुद को
नर्सिज्म के बेताल से।
Shukriya sir
ReplyDeleteउन्कुक्त होकर विचरने के लिए सभी प्रयासरत रहते हैं ..आखिर कब तक कोई मुक्ति के लिए छटपटाता जीता रहेगा
ReplyDelete..बहुत सुन्दर
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDelete--
अष्टमी-नवमी और गाऩ्धी-लालबहादुर जयन्ती की हार्दिक शुभकामनाएँ।
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दिनांक 18-19 अक्टूबर को खटीमा (उत्तराखण्ड) में बाल साहित्य संस्थान द्वारा अन्तर्राष्ट्रीय बाल साहित्य सम्मेलन का आयोजन किया जा रहा है।
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पर अपने आने की स्वीकृति से अनुग्रहीत करने की कृपा करें।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक"
सम्पर्क- 07417619828, 9997996437
कृपया सहायता करें।
बाल साहित्य के ब्लॉगरों के नाम-पते मुझे बताने में।
बहुत बढ़िया ! दिल से लिखी है !
ReplyDeleteसुन्दर रचनाएँ
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