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Friday, 27 September 2013

खामोश आँखों की बातें।

नहीं रहते पहले जैसे ख़्वाब
मुरझा जाते हैं प्रेम पुहुप
किसी साँवली सी शाम को
प्यासी निशा में गुम हो
जाती हैं, वो खामोश आँखों की बातें।
अलगाव के सहमे से स्पर्श।

अब नहीं निकलते अधरों से
थरथराते प्रेम के शब्द
बस उतेजना कागज के
पुर्जों में थरथराती है.....
कहाँ नजर आती है
देह को रोमांचित करने वाली समीर,
बस वियोग की उमस में
लथपथ रहती हूँ।

चाँदनी दिखती जरूर है,
पर सुखांत की बेवा नजर आती है।
सहसा तुमको याद करना,
अभिशाप हो जाता है.....
स्वप्न कायर की भांति
भागते नजर आते हैं.....
और मैं जलने लगती हूँ
शब्दों की मशाल से ......

क्यूँ कब और कैसे हुआ
अलगाव हमारा?
आज भी प्रश्न की खोज में हूँ,
और समय निरुत्तर खड़ा है,
मेरे समक्ष................
सुनो आ जाना उसी मोड पर
जहां एक मुलाक़ात अधूरी पड़ी है।
और हो सके तो समय के रिक्त स्थानो
को भी भर देना.........
सोनिया

6 comments:

  1. आपकी लिखी रचना की ये चन्द पंक्तियाँ.........
    नहीं रहते पहले जैसे ख़्वाब
    मुरझा जाते हैं प्रेम पुहुप
    किसी साँवली सी शाम को
    प्यासी निशा में गुम हो जाती हैं,
    वो खामोश आँखों की बातें।
    शनिवार 28/09/2013 को
    http://nayi-purani-halchal.blogspot.in
    को आलोकित करेगी.... आप भी देख लीजिएगा एक नज़र ....
    लिंक में आपका स्वागत है ..........धन्यवाद!

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  2. बढ़िया है .खास कर आपका परिचय देने का ढंग .वाह आपको हमारी औरसे ढेर सारी शुभ कामनाएं जी
    सुनील कुमार ठाकुर नवभारत मुंबई

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  3. Ati parshanshniye aur sarthak rachna.(.)Vireh rus shabdavli aur sur--taal me lajwab lekhika hain.

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  4. बहोत सूदर आप के विसार बहोत अछे हे

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