Monday 31 December 2012

प्रियतम तुम क्यूँ आए मेरे जीवन मे?
जब मिल ना पाये मुझ मे तुम 
ना नैन मिले ना अधर मिले 
ना साँसो का हुआ मधुर मिलन 
प्रियतम तुम क्यूँ आए मेरे जीवन मे,
जब मिल ना पाये मुझ मे तुम। 
ना काँटे पथ से हटा सकी 
ना खुद को ही मैं मिटा सकी॰ 


एक अधूरेपन.... की पीड़ा से 
लथपथ है, जाने क्यूँ मन,
प्रियतम तुम क्यूँ आए मेरे जीवन मे,
जब मिल ना पाये मुझ मे तुम 
मन की प्यास कहाँ बुझती है...?.
साँसे तुम बिन हैं मद्धम 
दिन जैसे-तैसे कट जाता 
निशा मे यादों का कृंदन 
प्रियतम तुम क्यूँ आए मेरे जीवन मे,
जब मिल ना पाये मुझ मे तुम 
सोनिया बहुखंडी गौड़

 

Saturday 22 December 2012

ज़िंदगी जीती रहूँ मैं उधार की

ज़िंदगी जीती रहूँ मैं उधार की
जब तक मिले साँसे तुम्हारे प्यार की,

 हांथों की इन लकीर मे तेरा, ही नाम है
उस नाम संग जीना मेरा बस काम है

 आशाओं मे जीती हूँ के मिल जाओ तुम
आलिंगन मे आके ना कहीं फिर जाओ तुम

... तुम भूख हो तुम प्यास् हो 
 टूटी हुई इच्छाओं की अरदास हो

कस्तूरी की भांति छुपे हो भीतर कहीं
मैं बांवली से ढूंदती क्यूँ फिर रही ?
सोनिया बहुखंडी गौड़

Saturday 8 December 2012

नींद ने टुकड़ों-टुकड़ों मे आना शुरू कर दिया

नींद ने टुकड़ों-टुकड़ों मे आना शुरू कर दिया
जब से आपने ख्वाबो मे कदम धर दिया 


अब हालात संभाले नहीं संभलते
हमने आपका नाम छुपाना शुरू कर दिया


हाल-ए-दिल बयां नहीं कर पाते हैं

इसी बहाने गजल बनाना शुरू कर दिया

बेचैन तुम भी हो बेचैन मैं भी
इस बेचैनी को हमने दिल मे भर दिया

एक दिन जरूर आएगा बेबसी का तूफा
हमने किनारों का इंतजाम पहले से ही कर दिया

मर्जी तुम्हारी की तुम आओ ना आओ
हमने ज़िंदगी को तुम्हारे नाम कर दिया

भूख होती तो उदर मे दबा लेती


भूख होती तो उदर मे दबा लेती
अश्रु होते तो नयन मे छुपा लेती
किन्तु यह प्रेम प्रियतम है तुम्हारा
इसको दबाऊँ मैं कहाँ?
इसको छुपाऊँ मैं कहाँ?
बेला की महक सा है ये
पाखी की चहक सा है,

जब भी तुम्हारा जिक्र हो
महकता है ये चहकता है ये
इस महक को, इस चहक को
बोलो छुपाऊँ अब कहाँ?
तुम ही बताओ ओ! सजन
इस प्रेम को लेकर जाऊँ मैं कहाँ? :)

एक सत्य निष्काषित हो गया जीवन से।




क्या पाया इस जीवन मे!!
बस मैंने खोया
जो पाया वो भ्रम था
जो खोया वही सत्य था

दुनिया के छल,प्रपंच मे उलझी
और तुमको खो बैठी
तुम ही सत्य थे
जब तुमको खोया
एक सत्य निष्काषित
हो गया जीवन से।

अंशुमलि आ गए


 
 
अंशुमलि आ गए
सोई धरा को जगाने,
सुगंधि उषा की फैली
नभ लगा मुसकाने
पक्षियों का मधुर कलरव
छा गया परिवेश मे
ऊमीदों के स्व्पन जागे,
नई दुनिया को सजाने..........
सोनिया बहुखंडी गौड़

मेरा मुकदर उनके लिए ही बनाया होगा

लोगों ने यूंही हल्ला ना मचाया होगा
कोई तो है जो दिल मे आया होगा!


उनके आने से अंधेरे मे चराग जल उठते
यूंही तो न शहर जगमगाया होगा


मुस्कराहट से उनकी गुलशन मे शगूफ़े खिलते

फूलों को भी उनपर प्यार आया होगा

खुशियाँ छा गई उनके आने से
मेरा दिल भी किस्मत पर इतराया होगा

ए ख़ुदा ! ये साथ छूटे ना अब कभी
यकी हैं तूने मेरा मुकदर उनके लिए ही बनाया होगा

तुम कौन हो जो बेधड़क

तुम कौन हो जो बेधड़क
दिल मे चले आते मेरे
अब सुबह हो या सांझ हो
सपने तो बस आते तेरे
जब जिक्र होता है तेरा

अहसास खिल जाते मेरे
अब सुबह हो या सांझ हो
सपने तो बस आते तेरे


तुम प्रीत की बरखा बने
आँगन मे आ-टिप-टिप बरस जाते मेरे
अब सुबह हो या सांझ हो
सपने तो बस आते तेरे

बन जाओ तुम,चंदन सजन
स्पर्श से अपने,अंग-अंग को महका दे मेरे
अब सुबह हो या सांझ हो
सपने तो बस आते तेरे।