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Monday 26 November 2012

मुझे गणित नहीं आती

मुझे गणित नहीं आती
रिश्तों मे जोड़-घटाना
स्नेह मे लाभ और ब्याज
मैंने नहीं सीखा
मुझे प्रेम का भूगोल
बखूबी आता है
शीत मे प्यार की धूप
गरमी मे स्नेह की छाँव
यही देना सीखा
लेकिन वापसी मे कितना
 
ब्याज मिलेगा ये अपेक्षा
ना की ना करूंगी
तुम जुड़े हो मेरे जीवन मे
तुम पर कविता रचूँगी
तुम्हारे आने की कुंवारी
आशा लिए द्वार मे नहीं
खड़ी मिलूँगी।

Thursday 22 November 2012

जीवन को मैं फुसला रही!!!


तुम्हारी  स्मृतियाँ  निशा के संग  दबे  पाँव आ रही
ना जाने क्यूँ हृदय पीड़ा? अभ्र बन,नैनो मे मेरा छा रही।
 
सो गए इस गहन तम मे,जग के सभी सहयात्री
मेरी व्यथाएं ना जाने क्यूँ?फूट-फूट रोये जा रही।
 
दूर मध्यम सी ध्वनि मे निम्नगा है गीत गाती
कोमल हृदय मे आपदाएँ,पग पसारे बीज दुख के बोये जा रही।
 
गत रैन भी-  मैं तारों की गणना करती रही
इस रैन   मे भी   नखत   गिनती जा रही।
 
पाणि का संजोग ना था,प्रेम फिर भी कर लिया
प्राण रथ की ताक मे, जीवन को मैं फुसला रही!
 
आनंद की मुझे थाह दे ईश्वर भी देखो सो गया,
निष्ठुर विभु की नींद को अपलक मैं देखे जा रही।
 
निःस्तब्ध तम मे श्वास वीणा सुर तुम्हारे छेड़ती,
इस भरे जग मे, भावों की मेरी बोली लगाई जा रही।
 
ना जाने किस देश मे तुम मुझे हो सोचते
और यहाँ मेरे देश मे मैं पथ निहारे जा रही।
 

Tuesday 20 November 2012

बातें क्या हैं? छल हैं।


बातें क्या हैं?

छल हैं।

जो मैं करती हूँ

जो तुम करते हो...

एक अरसा बीता

हम दोनों को

छल किए हुए.........

वही छल जो

हम दोनों को

एक-दूसरे के करीब

लाता था----

छल एक भ्रम था

जो नश्वरता का गुण

लिए आया था हमारे बीच

और अपने गुण के साथ

समाप्त हो गया-----

अब तो एक रेखा बन गई

है तुम्हारे और मेरे बीच

एक लक्ष्मण-रेखा!

जो अखंड सत्य है

तुम अपनी समाप्ति के

डर से, और मैं अपनी----

इस रेखा को पार

नहीं कर पा रहे हैं----

आश्चर्य!! हमारा रिश्ता

भ्रम पर टिका था,

जिसने अपनी समाप्ति के

साथ-साथ हमारे

रिश्ते को भी समाप्त कर गया।

 

Saturday 17 November 2012

पीछे रह गई वो बातें गुजरे जमाने की


कोशिश  तमाम की  आकाश को  ज़मी से  मिलाने की
यहाँ भी मुँह की खाई, खाई थी जैसे पहले प्यार को पाने की 
 
उनकी  उलफत  मे  उलझे  पड़े हैं   हम   आज भी
ख्वाबों मे भी कोशिश ना की उनकी यादों से दूर जाने की
 
जख्म-ए-जुदाई   का  दर्द  रातों  को  सताता  है
सहती रही पर कोशिश ना की ज़िंदगी से दूर जाने की
 
कितने  खूबसूरत पल  थे, जब  आँखों से बात  करते थे वो
उन पलों ने पल्ला झाड़ा, पीछे रह गई वो बातें गुजरे जमाने की
 
कुछ दुनिया के झाँसो ने,कुछ रिवाजों ने तुमको हमसे दूर किया
कसक आज भी  दिल को  सालती है, तुम्हें ना पा पाने की  

Monday 12 November 2012

जला ना पाये जो ज्ञान का दीप.....

कभी घर को बुहारा, कभी घर की दीवारों पर लगे जालों को उतारा,
जला ना पाये जो ज्ञान का दीप, कैसे करेंगे वो अज्ञानता संग गुजारा।
हृदय की कलुषता मिटा भी ना पाए, दिवाली के दीपों का लेते सहारा,
दीपों की माला तभी होगी सार्थक,अज्ञानता से कर लेंगे जब किनारा।

Saturday 10 November 2012

भूख की दस्तक


 
ना जाने दस्तक किधर से आ रही है?
गरीबों की खोलियों मे भूख कसमसा रही है
 
भूख को कैसे सुनाऊँ माँ की सिखाई लोरियाँ
लोरियाँ भी सिसकियों मे बदलती जा रही है
 
भूख तो अदृश्य है,देखा नहीं जिसको कभी
पेट की गलियों मे छुप कर शोर ये मचा रही है
 
 
रात की तन्हाइयों मे जाग जाती ये सदा
इसकी सदाएं आसमां के चाँद को तड़पा रही है
 
इक तरफ खामोश चूल्हा,एक तरफ बर्तन पड़े
रात की खामोशियाँ मेरे दिल को चीरे जा रही है
 
ए ख़ुदा कानों मे मेरे ये दस्तक एक चीख है
कचरे मे पड़ी रोटियाँ भूखे को मुह चिड़ा रही है
सोनिया प्रदीप गौड़
चित्र: गूगल से साभार  

Thursday 8 November 2012

दोस्ती मे मुझे अब चुक जाने दो

मेरी चुप्पियों को आज टूट जाने दो
आँख में जम गया जो खार उसे गल जाने दो
 
पड़ चुकी है लत मुझे धोखा खाने की
कोई थामो नहीं मुझको इश्क़ से दूर जाने दो
 
चूक होती रही मुझसे, दोस्तों को समझने मे
ख़ुदा, फरियाद करती हूँ दोस्ती मे मुझे अब चुक जाने दो
 
ना जाने क्या दिल मे भर बैठे हैं वो अपने
सागर-ए-दिल मे उनके मुझे उतर जाने दो
 
झील सी गहरी आँखों से बरगलाते रहे मुझको
मुझे रोको नहीं, इस झील मे अब डूब जाने दो
 
खता इतनी ज़िंदगी मान बैठी मैं तुम्हें अपनी
खता की दो सजा मुझको, मौत के करीब जाने दो
सोनिया बहुखंडी गौड़

ख्वाबों की तो जात ही है टूट जाने की

हम कोशिश करते रहे उनको अपने दिल मे बसाने की
पर उन्होने ज़िद ठान ली थी हमसे दूर जाने की

वो उम्र भर सोचते रहे के हम चाहते नहीं उनको
हम दलीलें ही देते रह गए, अपने मोहब्बत के पैमाने की
 
बे-मतलब, बे-बात रूठते रहे वो,
और हम तरकीबें सोचते रहे उनको मनाने की
 
भटकता रहा वो बेमकसद इधर-उधर
कोशिश ना की इक बार भी मेरे दिल के ओर आने की

हम खोये रह गए उनके ख्वाबों में
ख्वाबों की तो जात ही है टूट जाने की
सोनिया बहुखंडी गौड़

Sunday 4 November 2012

जब तिमिर ढलेगा एकांत का

जब तिमिर ढलेगा एकांत का
समझुंगी तुम आए,
मेरे गीतों के शब्दों मे,
प्रियतम तुम ही तुम बस छाए।
भू पर क्रीड़ित चंदानियाँ,
नभ मे चाँद अकेला,
चाँद की दुखद अवस्था देख
मेरा दुख भी बढ़ जाये।

मेरे रोम-रोम मे प्रियतम ,
तुम ही तुम बस छाए।
मौन तुम्हारा बना शीर्षक,
हृदय क्यूँ शोर मचाए।

 नैनो की गतिविधियां देखो!
सबके समक्ष हैं आए,
मेरे संवादों मे प्रियतम
तुम ही तुम बस छाए।

 मेरे प्रेम की वैदेही
अग्नि परीक्षा भी देगी,
यदि तू जीवन मे
राम बनकर आए।
मेरे प्रेम की रामायण मे
प्रियतम तुम ही तुम बस छाए
सोनिया बहुखंडी गौड़