Friday 26 October 2012

कौन है सूने हृदय मे?

कौन है सूने हृदय मे?
कौन आहें भर रहा है?
कौन गर्वित भाव से ?
स्नेह वर्षा कर रहा है?

...
कौन है जो चक्षुओं से
पीर के मोती पिरोता
कौन है जो स्वप्न मे,
आके है रोता?

कौन है जो अदृश्य होके
दृश्य मेरे ले रहा है
कौन है जो मौनता से
दिशा ज्ञान दे रहा है।

कौन है जिसने
अभी थामी थी बाहें
कौन है जिसके,
बिना सूनी है राहें ?

Sunday 21 October 2012

प्रेम कुदाली तुमने चलाई

हृदय मे गति थी कल तक
प्रेम कुदाली तुमने चलाई
मेरे हृदय को विस्थापित कर दिया
ये षड्यंत्र नहीं तो क्या?
अच्छा-भला तो फुदक रहा था कोने मे

तुमने अपने कोने से मिला लिया,
और मेरी कुँवारी आशाओं को
विचलित कर किधर गए?
अतिशयोक्ति नहीं किन्तु
निर्जीव हो गई हूँ मैं,तुम्हारे बिना
दिमाग चल रहा है, दिल नहीं
विनिमय कभी एक तरफा नहीं होता
यदि मेरे हृदय को अपने कोने से
मिला बैठे हो तो, अपना कोना मुझे दे दो
यही तो है प्रेम का सच्चा सौदा,
आओ दोनों मिलकर षड्यंत्र करे
तो षड्यंत्र सार्थक हो जाएगा,
और मेरे हृदय का विस्थापन भी :)

Thursday 11 October 2012

एक भूतिया घर !

 
एक भूतिया घर !
और हम आत्माएँ
भटकती हुई,
निर्वाण हेतु संघर्षरत
श्वेद से लथपथ!
अपरिचित मुस्कान,
का होता आदान-प्रदान
किन्तु मित्रता असंभव !
कैसा है ये घर!
भूतिया घर।
दिन के उजास मे
भी,क्रोध के चमगादड़
दीवारों से चिपके रहते,
और अहम के उल्लू
हमें घूरते रहते,
मिट नहीं पाता,
रात-दिन का भेद
गलतफहमियों की स्याही
भी आस-पास फैली पड़ी है ,
सूखाने के लिए सोख्ता भी
नहीं मिलता.......
हम आत्माएँ भी
मुक्ति चाहती हैं,
तंत्र-मंत्र-यंत्र जो हो
जल्द उपचार हो जाये
और इस भूतिया घर
को मुक्ति मिल जाये  
मुक्ति मिल जाये---------
सोनिया बहुखंडी गौड़

Wednesday 10 October 2012

एक गर्भवती


एक गर्भवती,
रात मे पीड़ा से कराहती,
बेचैनी से करवटें बदलती।
बगल मे सोते पति को
आवाज ना दे पाई,
मन मसोस के चुप रह गई,
...
और हल्का सा मुस्काई
कल तक की बात हई।
कल मेरा खिलौना आ जाएगा
प्रांगण मे उसकी किलकरियाँ
गूजेंगी, और मेरा अस्तित्व
पूर्ण हो जाएगा......
तभी दर्द की तेज लहर उठी
वो चिल्लाई........माँ
और हो गई बेसुध.....
होश आया तो महसूस
किया खुद को
आई0सी0यू0 के बिस्तर पर
नसों मे गुलूकोज की सुइयां,
धँसी हुई, फिर भी
आँखें नन्हें को
ढूंदती हुई।
नर्स ने इस मौन
को ताड़ा,और चुपके
से कहा--- बेटा था!!!
किन्तु मरा हुआ !!
चीख भी ना पाई खुल कर
न सुन पाई अपने खिलौने
के टूटने की आवाज.....
कल से आँगन मे
किलकारियाँ नहीं
उसकी सिसकियाँ गूँजेगी,
और उसका खामोश दर्द,
जो एकांत मे बोलेगा।
सोनिया बहुखंडी गौड़


इतना कहा मेरा मान जा

क्या व्यथा है,
प्रेयसी मुझको बता,
नैन मे बहता लवण
कहता है क्या?
यदि तू कहे
तो चंद्रमा की
...
चाँदनी तेरे पग
पसारूँ..... या
निशा के रंग
को तेरे नैन
मे, मैं सवारू
सुबह को कर
दूँ विवश तेरे
आस्प खिल मे
जाये वो,
अपने हृदय की
विवशता मुझको जता।
बस दो क्षणो की
ही बात है, मैं
लौट कर फिर
आऊँगा, आशाओं
को तुम द्वार पर
रखना खड़े....
और व्यथाओं को
हुवि मे भस्म कर
सुखो की छाया
मे जा .....
इतना कहा मेरा मान जा....
सोनिया बहुखंडी गौड़