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Wednesday 30 May 2012

वो! आबरू को लूट मेरी,आज धनी बन गए

सोचते हैं वो!
आबरू को लूट मेरी
आज धनी बन गए
और मुझको इस
धरा मे कवचहीन
कर गए---
... आज जब घर जाएंगे
दर्पण भी लज्जित हो जाएगा
लाख ढँप लें तन को अपने
धिक्कार से भर जाएगा
आज मेरे नैन जो,
अश्रुयों से भर गए,
घर मे खड़ी माँ-बहन से
ना नैन मिला पाएगा
जो प्रीत उस पापी ने
मेरी नश्वर देह
से लगाई थी
धिक ऐसी प्रीत को
जिसने एक अबला की लाज
भरे जग लुटाई थी
हस ले पुरुष तू आज जितना
पुरुषत्व के इस् दर्प पर
अपनी नजर मे जब
तू गिरेगा-
पुरुषत्व का
ये दर्प, काँच सा चूर-चूर
हो जाएगा,
सोनिया बहुखंडी गौड़

Monday 28 May 2012

तुमने मेरा परिहास किया।






प्रेम है तुमसे

मैंने कब अस्वीकार किया!!

मैंने बस अपनी

मजबूरी से परिणय

करना,स्वीकार किया

जब भी तुम

परिक्लांत हुए!,

मेरे आँचल की

छाँव मिली,

फल इसका क्या

मुझे मिला?

तुमने! प्रेम मेरा त्याग दिया,

समझ ना पाये

क्या अब तक,

मेरी मौन मे था सब कुछ,

किन्तु छलावा था

वो सब! जिसको

तुमने ज्ञात किया

प्रेम इसे ही

कहते हैं क्या,

जब भावों का

मर्म न समझ

सके, दिल टूटा

मेरा उस क्षण

जब मुझे संघतिक

कह वार किया

जब मैंने समझाना

चाहा,तुमने मेरा परिहास किया

प्रेम है तुमसे

मैंने कब अस्वीकार किया!!

मैंने बस अपनी

मजबूरी से परिणय

करना स्वीकार किया


Friday 25 May 2012

खुशबू अचानक फिर, तुम्हारी आई है।

जागरण करती रही,
मैं रात-भर
याद ने तेरी मुझे
सोने ना दिया,
या कहूँ कम्बखत!
स्व्प्नो के भय से
... नींद मे खुद को
नहीं खोने दिया
स्वप्न टूटे पीर
होती है बहुत,
तुमसे मिली एकांतता
टीस देती हैं बहुत,
इनसे भली यादें
तुम्हारी हैं प्रेयस
जो चल रही हैं
संग मेरे हर घड़ी
लाती हिमालय से
कभी ये सर्द रातें
और कभी मरुभूमि की,
गरम सांसें,
आज मलयज को
बहाकर लाई है ये!!
खुशबू अचानक फिर
तुम्हारी आई है
खुशबू अचानक फिर, तुम्हारी आई है।
सोनिया बहुखंडी गौड़ (25/05/2012)

Thursday 24 May 2012

तुम्हारी मौत

दीवारों का रंग स्याह क्यों हुआ?
कल तक तो सुखों के रंग दमकते थे,
दुख चील की तरह पंख फैलाए है।
उन पंखों की छाया से दीवार स्याह हुई,
कल तक मेरे सपने सूखे थे,
जो सुख से लबरेज थे, और तुम्हारे,
अहसासों से भरे थे॥
आज सपने गीले-गीले हैं,
दुख की पैंठ सपनों तक पहुँच
चुकी है,
बे-मौसम की बारिश
मेरे आसुओं को धोने मे प्रयासरत है।
मैं गंगा के तट मे,
तुम्हारी अस्थियों का विसर्जन
देख रही हूँ, यकायक पानी मे
तैरती अस्थियों मे मुझे मेरा ही
चेहरा नजर आता है,और तट मे बैठे तुम
लगता है की तुम नहीं मरे, किसी ने
तुम्हारी मौत की झूठी खबर मुझ तक फैलाई
ये विसर्जन भी झूठा है। तुम तो आज भी
जीवित हो। मुझमे सांस लेते हुए,
हो सके तो स्याह पुती दीवारों पर
प्रेम का रंग चढ़ा देना,
और गीले सपनों मे सुख का
सूखापन मिला देना........

Tuesday 22 May 2012

हृदय का पुस्तकालय

 
तेरी यादों की पुस्तक,
हृदय के पुस्तकालय मे लगी है,
जिसमे हमारे मिलन की
अद्भुत कथा गड़ी है,
मैं उस पुस्तक को पुनः
नहीं खोलना चाहती,
... किन्तु शत्रु समीर के समक्ष
मुखरहीन हो जाती
वो अपने वेग से
इक-इक प्रष्ठों को खोल
मुझे कष्ट पहुंचा रहा है,
और तुम्हारी जुदाई का दुख
नमक रूप मे नैनो से बहता जा रहा है
और पीड़ित मन की आतुरता स्वयं कह उठी,
दर्द की अभिव्यक्ति जब भी मेरी
आँखों से बहेगी,
तेरे पाषाण हृदय मे भी ठोकर लगेगी।
*************************************************
मैं दूषक हूँ नहीं तेरी
ना बनना चाहती हूँ,
ना फिर से अब तेरे मन
को मैं पढ़ना चाहती हूँ। सोनिया बहुखंडी गौर

Monday 14 May 2012

तुम हो नहीं सकते मेरे





जब हम मिले थे

मौनता का एक

शीर्षक था समीप

फिर मौन तेरा,

आज क्यों ?

हो गया इतना आधीर,

थे पृथक अपने रास्ते

होने लगे हैं

क्यों करीब?

है स्नेह तेरा निषकलुष

इसमे कोई शंका नहीं
फिर राग की तृष्णा
तेरी हुई क्यों अतीव,

जब हम मिले थे----------

क्यों हृदय सागर

बन गया?

क्यों प्रीति की

वीरुध बड़ी

लगने लगा है क्यों

मुझे परिकल्पना हो

तुम मेरी?

क्यों भीति मन

मे है छुपी

जब ज्ञात है

मुझको सभी,

तुम हो नहीं सकते मेरे

इस ज़िंदगी मे कभी
जब हम मिले थे-----------------

Saturday 12 May 2012

ईश्वर आज फिर से जी उठा है.

स्वांत सुखाए हेतु
ईश को मैंने त्याग दिया था
या फिर ऐसा बोलूं
... प्रतिमायों को कफ़न से
ढांप दिया था।
तम के प्रति जागरूक होकर
सूरज को था ठुकराया मैंने,
कुछ दिन तक पहले
प्रेम किसी का न पाया मैंने
किन्तु इन दिनों
एक अपरिचित
प्रेम का दीप,
लिए खड़ा है,जिससे
अंधियारा मन मेरा
दीप्त हुआ है
श्वेत रंग भी हुआ गुलाबी
सुख के सदन में
ईश्वर आज खड़ा है,
जब से तुमको पाया प्रियतम
मेरी दृष्टि में
कफ़न में लिपटा ईश्वर
आज फिर से जी उठा है.
(सोनिया बहुखंडी गौर )

Thursday 10 May 2012

हिंदुस्तान का भविष्य


मैं गरीब हूँ..गलीच नहीं,
क्या हुआ के!!
मैं अमीरों के बीच नहीं, मेहनतकश हूँ,
कमाता हूँ,अपनी जिन्दगी जीता जाता हूँ,
दो मृत शरीरों ने मुझको पैदा किया,
किताबों की जगह, ये कचरे का झोला दिया
मिटटी से सना था जब पैदा हुआ,
मिटटी के बीच आज भी खड़ा,
शर्म करो भ्रष्टाचारी नेताओं...
मेरे हिस्से के अर्थ से तुमने उदर भरा,
चिंता मेरे लिए धुएं के जैसी है
जिसे मैं उडाता जाता हूँ,
मेरे कंधे में कचरे का झोला नहीं
हिंदुस्तान का  भविष्य है
जिसे मैं ढ़ोता जाता हूँ---ढ़ोता जाता हूँ

Tuesday 8 May 2012

घर के बागीचे पर एक मनीप्लांट की बेल पर एक बड़े पत्ते के सहारे, उसी पत्ते के उप्पर एक नए अद्खिले पत्ते के भीतर चिड़िया रानी ने अपना घोंसला बनाया है, घोंसला टूट ना जाए इस लिए बड़े ही चुपके से ये फोटो क्लीक कर दी... उस्सी विषय पर ये रचना बन पड़ी है.....




चाय की चुस्कियां लेते समय
अचानक एक नन्ही बादमी
चिड़िया पर नजर पड़ी
जो बागीचे में लगे
मनीप्लांट की तरफ
जाती और लुप्त हो जाती!!
ना जाने फिर कहाँ से
वापस आ जाती,
एक लम्बी उडान भरती
तिनके और दानो की खोज में,
थकी और कम्पित साँसे लिए
ये क्रिया अनवरत चल रही है
छाँव के लिए उसे किसी
घने तरुवर की चाह नहीं
उसे तो बस चलते जाना है,
मन विस्मित है मेरा
मनीप्लांट में ये तिनके
ठहर पायेंगे?
जिज्ञासु मन मेरा चल पड़ा
नन्हे शिल्पी को परखने,
किन्तु यह क्या?
मनीप्लांट के बड़े,
अधखिले कोंपल को,
भीतर तिनके के बिछौने से सजाया है,
किसी को भी डाह हो जाए,
अपने नर्म गद्दों पर,
तिनके के बिस्तर पर,
तीन नवजात चूजे ची-ची
कर रहे थे, जैसे मानव शिशु
किलकारियां भरता है,
तभी चिड़िया ने तेज-तेज
ची-ची करना शुरू किया
मानो कह रही हो--
दूर हटो,मेरे घोंसले से
तुम मेरी शक्ति से परिचित नहीं
मुझमे सृजन और संहार की
क्षमता है
मैं माँ हूँ !!
ये सुन मेरा ह्रदय
मातृत्व से भर उठा
लगा चिड़िया कहाँ बोली
ये तो मैं बोली हूँ,
चिड़िया तो माध्यम है
हां उस चिड़िया में
इन दिनों मैं क्रियाशील हूँ

Sunday 6 May 2012

प्रिये आज दिखाऊँ

 प्रिये आज दिखाऊँ,
 चलो तुम्हे मैं...
 प्रकृति के अंदाज निराले..
 नदी,पुलिन और शीतल धारा
 और गगन का चाँद-सितारा
 आओ पाश में बांध जाएँ हम
 प्रीत बना लें एक सहारा,
 दूर से देखो उन पर्वत को,
 अपनी प्रीत के हैं ये प्रहरी
 निशा सुहानी हमें निहारे.
 चाँद ले श्वासे गहरी-गहरी,
 तरुवर  भी साक्ष्य बने है देखो
 नैनाभिराम द्रश्यों के 
 मिलन की  बेला बीत न जा जाये.
 आओ जीवन सुखांत बनाये
 अब काहे की देरी------------------

Friday 4 May 2012

( अजन्मी भ्रूण की कहानी )

आज गीला है बहुत,
मेरी माँ का आंगन
मृत्यु   पर मेरी  रोई बहुत!!!
क्षण-क्षण हुई आहत मेरी माँ...
जाने अबल क्यों हो गई?
दुर्जन जगत के सामने,
क्यों आश्वहीन वो हो गई?
मैं; चार माह की थी.. अजन्मी
कोख को समझी जगत,
अनजान थी, ,मैं मूर्ख थी,
मुझ को कहाँ इतनी समझ...
वंचक बना मेरा पिता,
औरस की थी उसे लालसा
जीवन की मेरी नाव का
पतवार कोई ना बना.......
मेरी माँ बिलखती ही रही,
दानव पिता के सामने....
औजार,चाक़ू,पिनों से.....मेरी जब हत्या हुई
यम भी लगे थे कांपने,
मेरी माँ की कोख उजड़ गई
खिलने से पहले एक कलि
बिन खाद ,जल के मर गई
इतने बड़े संसार में मेरी माँ अकेली पड़ गई----२
देख माँ के इस एकांत को
मेरी आत्मा बिफर उठी..
और चीख कर मैंने कहा----
ओ पुरुष! तू पुरुषार्थ के
क्यों दंभ से भीगा हुआ?
क्या तू नहीं है जानता?
मेरे जनम से जो जग बना
मेरे अंत से मिट जायेगा...
कन्या-भ्रूण हत्या पाप से
तू कभी ना बच पायेगा, तू कभी ना बच पायेगा

सोनिया बहुखंडी गौर

Thursday 3 May 2012

( अपने पिता की याद में लिखी गई एक कविता.....जो अब नहीं रहे )


 पापा याद है मुझको तुम्हारी वो बीमार आंखें
तुम्हारी टूटती साँसे, जिन्दगी थक गई जैसे,
म्रत्युं परिचय बढाने को....तुम्हारा हाँथ थामे थी...
मौनता आपकी मुझसे बहुत कुछ बात करती थी;
बढाती बात को आगे, सूर्य निद्रा में जा पहुंचा,
सांझ की थाह पाकर के, विदा क्षण भी आ पहुंचा;
तुम्हारी विदा यात्रा में ना जाने कितने कंधे थे
नहीं था बस तेरा कन्धा.. ज...ो माँ का इक सहारा था.......
पापा याद है मुझको तुम्हारी वो बीमार आंखें.....

जिन्दगी के चौराहे में मची थी लूट कुछ ऐसी...
मैं कर्जों की गठरिया ले..व्यापारी बन गई फिर भी,
दुकां पर, एक मैं पहुंची; सजी थी जो सुहागों से
मैं माँ के लिए सब लेती..सिसक सिन्दूर था बोला
है अब बेकार सब कोशिश कहाँ मेरा मिलन होगा...
पापा याद है मुझको तुम्हारी वो बीमार आंखें.................सोनिया बहुखंडी गौर

Wednesday 2 May 2012

विरह गीत में मैंने मुहावरों का प्रयोग किया..

"ठंडी साँसें भरकर " प्रियतम
तेरा स्मरण कर लेती हूँ.
पथ में पड़ा हुआ पत्थर हूँ
ठोकर खाकर, भी खुश रह लेती हूँ
...
जी खट्टा हो जाता अक्सर
जब भी तुम मुझको बिसराते
मेरा जी फिर भर आता है
यादों में जब तुम छा जाते।

किया किनारा जब से तुमने
आसमान भी फटा मुझी पर
आते-जाते सभी पथिक में
तेरी छवि को ही मैं खोजूं
"ठंडी साँसें भरकर " प्रियतम
तेरा स्मरण कर लेती हूँ---------------------
(सोनिया बहुखंडी गौर